Thursday, April 11, 2013

रब, कैसे मानूं की तू है....

आपके दरबार के बाहर बैठा हुआ एक मजबूर को मैं देखता हूँ,
जो आपकी पनाह में हमेशा रहता है,
दोनों पैर नहीं है उसके,
फिर भी उसकी हिम्मत देखकर मैं हैरत में रह जाता हूँ…

रोज़ रोटी की लड़ाई वोह करता है ,
एक-एक रूपया के लिए दूसरे के सामने गिड़गिड़ाता है,   
उनके पीछे वोह भागता है,
तुम्हारा वास्ता देता है,
फिर भी वोह कुछ नहीं पाता है,
बे-बस सा चेहरा लेकर फिर तुम्हारे दरबार के बाहर आकर बैठ जाता है.

रब, कैसे मानूं की तू है....

एक माँ, अपनी छाती से लिपटे बच्चे को अपने एक हाथ से पकडे रहती है और
दूसरे हाथों में मांग का कटोरा लिए रहती है,
तेरे दरबार में आये लोगों के सामने खाली कटोरा बढाती है,
भूखे बच्चे का वास्ता देती है,
तुम्हारा वास्ता भी देती है,
लोगों के तिरस्कार के सिवा वोह कुछ नहीं पाती है,
बे-बस सा चेहरा लेकर फिर तुम्हारे दरबार के बाहर आकर खड़ी हो जाती है.

रब, कैसे मानूं की तू है....

एक छोटा सा मासूम सा बच्चा,
बरसातों में, गर्मियों में, सर्दियों में
रोज़ तेरे दरबार के सामने खड़ा रहता है,
आने-जाने वाले सब तेरे बन्दों से मांगता रहता है,
उसके बचपन की मजबूरी किसी को दिखाई नहीं देती है, 
कितना मायूस होकर वोह रह जाता है.

रब, कैसे मानूं की तू है....

तू ही बता रब, कैसे मानूं की तू है...
रब, कैसे मानूं की तू है....

फिर भी मैं विश्वास का दीपक हमेशा जलाता रहता हूँ,
तेरे दरबार में रोज़ सर झुकाता हूँ,
कभी तो तू नज़रे-करम उनपर भी करेगा, 
बस यही दिलासा रोज़ तेरे दरबार से लेकर चला आता हूँ…

रोमिल, तू ही बता, कैसे मानूं की रब है...

#रोमिल

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