Tuesday, March 26, 2013

त्यौहार पर मुरझाए हुए चेहरे अच्छे नहीं लगते

माँ कहती थी...

त्यौहार पर मुरझाए हुए चेहरे अच्छे नहीं लगते
होली के दिन, कमरे में छुपकर बैठे हुए मुंडे-कुडियां अच्छे नहीं लगते।

त्यौहार पर बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना कभी मत भूलो
संस्कारों के बिना घर अच्छे नहीं लगते।

"घर छोटा ही सही भालू कदी ग़म न करी"
बड़े-बड़े कमरों में बिखरे हुए परिवार-रिश्ते अच्छे नहीं लगते।

गुस्सा करना भावनात्मक ऊर्जा हो सकती है
पर मासूम से मुख से कड़वे बोल अच्छे नहीं लगते।

स्वाभिमान बेचकर, सर झुकाकर रोटी तो कमाई जा सकती है
पर ऐसी रोटी के निवाले अच्छे नहीं लगते।

चोरी करना, झूठ बोलना इसमें फ़ायदे तो बहुत है
पर ऐसे सौदे अच्छे नहीं लगते।

सच्ची मुहब्बत है, फिर भी जुदा हो गये
"माना रब जो करता है अच्छा करता है", फिर भी रब के कुछ फैसले अच्छे नहीं लगते।

और 

"कंजर क्यों तकिए से लिपटकर रोई जा रहा है, कुछ बोलता क्यों नहीं?"
इश्क में अपने बच्चों के ऐसे हालात अच्छे नहीं लगते।

#रोमिल

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