जब हम अपनी धुन में ही जिया करते थे
एक-दूसरे से लड़ाई कर चुप-चाप फिरा करते थे।
आँखें तो कहती थी कि मन बात करना चाह रहा है,
मगर होंठों को हम सी लिया करते थे।
शाम-रात को गलियों में फिरा करते थे,
देखते ही एक-दूसरे को किसी वीराने में सॉरी कह दिया करते थे।
और
याद है, घर की दीवार सजाने के लिए,
तुम मेरी इडियट से ड्राइंग लगा दिया करती थी।
फूल/कार्ड्स तो तुमको पसंद नहीं थे
तुम मेरी स्टूपिड ड्राइंग की दीवानी हुआ करती थी।
मेरे लिए तुम गुरूद्वारे भी जाया करती थी,
जन्माष्टमी में श्री कृष्णा जी को तुम अपने हाथों से सजाया करती थी।
"रोमिल" दोस्त याद है, वोह अपने बचपन के दिन,
जब हम अपनी धुन में ही जिया करते थे
एक-दूसरे से लड़ाई कर चुप-चाप फिरा करते थे।
#रोमिल
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