Sunday, March 24, 2013

खुदा ने अपना मुक़द्दर ही कुछ ऐसा बनाया है।

हवाओं ने हिलाया था दरवाज़ा मेरे घर का
मैं सोचा की वोह आया है। 
***
चिट्ठी लेने को जो भागा था मैं डाकबाबू के पीछे
वोह तो किसी अनजान का पता खुद मुझसे पूछने आया है।
***
कहने को तो बहुत साथी थे अपने
मगर अपना साथ किसी ने भी नहीं निभाया है। 
***
ज़िन्दगी बीत गई अपनी इंतज़ार में सखी 
खुदा ने अपना मुक़द्दर ही कुछ ऐसा बनाया है। 

#रोमिल

No comments:

Post a Comment