हवाओं ने हिलाया था दरवाज़ा मेरे घर का
मैं सोचा की वोह आया है।
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चिट्ठी लेने को जो भागा था मैं डाकबाबू के पीछे
वोह तो किसी अनजान का पता खुद मुझसे पूछने आया है।
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कहने को तो बहुत साथी थे अपने
मगर अपना साथ किसी ने भी नहीं निभाया है।
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ज़िन्दगी बीत गई अपनी इंतज़ार में सखी
खुदा ने अपना मुक़द्दर ही कुछ ऐसा बनाया है।
#रोमिल
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